क्या है एक देश, एक चुनाव बिल?

एक देश, एक चुनाव बिल का प्रस्ताव है कि लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय चुनावों को हर पांच साल में एक साथ आयोजित किया जाए। यह चुनावों को एक साथ लाने का एक बड़ा कदम है।

सरकार का कहना है कि इससे चुनावों की लागत कम होगी, शासन में रुकावट नहीं आएगी और नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी।

सरकार का तर्क

इस बिल के तहत, लोग एक ही दिन में कई चुनावों के लिए मतदान करेंगे, और सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट का इस्तेमाल होगा।

वोटिंग प्रक्रिया में बदलाव

भारत ने 1952 से 1967 तक सभी चुनाव एक साथ किए थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और मध्यकालीन चुनावों के कारण यह व्यवस्था टूट गई।

पिछले अनुभव

इस बिल के समर्थकों का कहना है कि इससे करदाताओं का पैसा बचेगा, मतदान में बढ़ोतरी होगी और चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा।

विरोधियों का कहना है कि यह बिल संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है, क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत को घटा सकता है, और स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति से दब सकते हैं।

इस बिल को पास करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी और राज्यों से भी मंजूरी मिलनी चाहिए। इसके अलावा, सभी चुनाव एक साथ आयोजित करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।

समर्थक इसे स्थिरता और प्रगति का कदम मानते हैं, जबकि आलोचक इसे केंद्रीयकरण और क्षेत्रीय राजनीति की अनदेखी मानते हैं। क्या भारत अपने चुनावी चक्र को एकजुट कर पाएगा बिना संघीय तंत्र को नुकसान पहुंचाए?