भारत ने 1952 से 1967 तक सभी चुनाव एक साथ किए थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और मध्यकालीन चुनावों के कारण यह व्यवस्था टूट गई।
इस बिल को पास करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी और राज्यों से भी मंजूरी मिलनी चाहिए। इसके अलावा, सभी चुनाव एक साथ आयोजित करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
समर्थक इसे स्थिरता और प्रगति का कदम मानते हैं, जबकि आलोचक इसे केंद्रीयकरण और क्षेत्रीय राजनीति की अनदेखी मानते हैं। क्या भारत अपने चुनावी चक्र को एकजुट कर पाएगा बिना संघीय तंत्र को नुकसान पहुंचाए?